श्री राम-कृष्ण लीला भक्तामृत चरितावली
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Quick Overview
इस दिव्य ग्रन्थ-१ में श्री परमहंस राम मंगल दास जी को दर्शन देकर जिन्होंने पद लिखवाये हैं, संक्षिप्त रूप में वे हैं:ङ्क
-- भगवान राम जी, सीता जी, कृष्ण जी, राधा जी, विष्णु जी, लक्ष्मी जी, शिव जी, पार्वती जी, गणेश जी, सरस्वती जी, दुर्गा जी, काली जी, हनुमान जी
-- वशिष्ठ जी, विश्वामित्र जी, ध्रुव जी, प्रहलाद जी, यमराज जी, वाल्मीकि जी, व्यास जी
-- हरि व हरि भक्तों द्वारा मारे जाने पर भगवान के धाम को गए राक्षस-हिरण्यकश्यप, तारकासुर, महिषासुर, रावण, कंस
-- रामायण व महाभारत के पात्र- दशरथ जी, जनक जी, भीष्म जी, विभीषण जी, युधिष्ठिर जी
-- बुद्ध जी, ऋषभ देव जी, मोहम्मद साहब जी, ईसा मसीह जी, हजरत निजामुद्दीन औलिया जी, स्वामी रामानन्द जी, आदिगुरु शंकराचार्य जी, स्वामी रामानुजाचार्य जी
-- गुरु नानक जी, गुरु गोविन्द साहब जी, कबीर दास जी, तुलसीदास जी, रामकृष्ण परमहंस जी
-- बादशाह अकबर, बादशाह सिकंदर, महाराणा प्रताप, महारानी विक्टोरिया, लेनिन जी
-- भगत सिंह जी, गोखले जी, तिलक जी, मोतीलाल नेहरू जी, लाला लाजपत राय जी
इस ग्रन्थ में पूज्य ग्रन्थोंङ्कश्री रामचरितमानस, गीता, कुरान, गुरु ग्रन्थ साहब के दिव्य रूप से लिखे जाने का समय बताया गया है। जैसे, श्री हनुमानजी ने लिखाया है कि श्री रामचरितमानस की रचना विक्रमी संवत् १६३१ चैत रामनवमी, मंगलवार के दिन विष्णु भगवान तथा सब देवी देवताओं के समक्ष शंकर भगवान द्वारा दी हुई दिव्य लेखनी के द्वारा तुलसीदास जी ने सुबह ८ बजे से शाम ४ बजे के बीच सम्पन्न की। इस ग्रन्थ का नामकरण दिव्य रूप से गुरु वशिष्ठ जी ने किया। उन्होंने वि. संवत् १९९० अर्थात् १९३३ ईस्वी में प्रकट होकर श्री परमहंस राम मंगल दास जी को इस दिव्य ग्रन्थ को १९९९ ईस्वी में छपवाने की आज्ञा दी। यद्यपि इस ग्रन्थ का समापन ११ जुलाई १९४५ ईस्वी को हो चुका था किन्तु यह ग्रन्थ परमहंस राममंगल दास जी द्वारा गोकुल भवन आश्रम में परम पूज्य रूप से सुरक्षित रखा गया। भगवान की असीम कृपा से तथा श्री परमहंस राममंगलदास जी के आशीर्वाद से, श्री वशिष्ठ जी की आज्ञानुसार १९९९ ईस्वी में यह दिव्य ग्रन्थ प्रकाशित किया गया।
Name | श्री राम-कृष्ण लीला भक्तामृत चरितावली |
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ISBN | sr20385 |
Pages | 100 |
Language | Hindi |
Author | परमहंस राम मंगल दास |
Format | Paper Back |
About Author : -
अनन्त श्री परमहंस राम मंगल दास जी (१८९३-१९८४) गोकुल भवन, अयोध्या
परमहंस राम मंगल दास जी विश्व के एक अद्वितीय ब्रह्मलीन संत थे जिनके समक्ष भगवान, देवी-देवता, ऋषि-मुनि, हर धर्म के पैगम्बर, सिद्ध संत, पौराणिक तथा ऐतिहासिक महापुरुषों ने प्रगट होकर आध्यात्मिक पद व उपदेश लिखवाए। परमहंस राम मंगल दास जी ने इन आध्यात्मिक पदों को मुखयतः चार दिव्य गं्रथों में संग्रहीत किया। भगवत् कृपा से लगभग ५० वर्ष पूर्व लिखे गए तथा दिव्य रूप से नामकरण किए गए इन ग्रंथों का सर्व जगत कल्याण के लिए अब प्रकाशन किया जा रहा है।
विश्व के इन अलौकिक ग्रंथों में भगवान के नाम की महिमा, सद्गुरु महिमा, सुरति शब्द योग, भगवान को पाने के अनेक मार्ग तथा उनमें आने वाली स्थितियां व अनुभव, ध्यान की विधियां, विभिन्न अनहद नाद, पूजन की विधियां, सब कमलों, चक्रों व नाड़ियों का वर्णन है। भगवान, देवी देवताओं के स्वरूप तथा सब लोकों का वर्णन किया गया है।
इन समस्त दिव्य ग्रंथों की मुखय बात यह है कि इनमें किसी विशेष गुरु या साध्न पद्धति का अनुकरण करने के लिए नहीं कहा गया है। ये दिव्य ग्रंथ हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि सभी धर्मों के पालन करने वालों के लिए हैं। अपनी अपनी परंपराओं पर चलते हुए कैसे भगवान की प्राप्ति हो सकती है इसका वर्णन दिव्य सिद्ध संतों ने किया है।
हर धर्म, जाति व पेशे (व्यवसाय) के संत पुरुष व संत स्त्रियों ने लिखवाया है कि जीवन में कैसा आचार-विचार होना चाहिए तथा उन्होंने किस प्रकार के कार्य किए जिनसे उनका कल्याण हुआ तथा उन्हें भगवान का धाम प्राप्त हुआ।
इन दिव्य ग्रंथों में सब धर्मों का सार, उनकी एकता, विश्व बंधुत्व, सब में प्रेम व्यवहार, सद्भाव, दीनता व सेवा भाव का उपदेश दिया गया है। श्री गुरुदेव परमहंस राम मंगल दास जी के अनुसार, इन ग्रंथों को जो पढ ेगा, उन बातों पर चलेगा और तदनुसार अपनी दिनचर्या बनाएगा तो उसका जीवन सार्थक होगा, उनका कल्याण होगा।