Jai Bheem - Jai Meem Aur Babasahab (जय भीम - जय मीम और बाबासाहेब)
Quick Overview
'जय भीम-जय मीम और बाबासाहेब' पुस्तक ऐतिहासिक तथ्यों से भरपूर एक शोधपरक दस्तावेज है, जो भारत के बाहरी-भीतरी राजनीतिक षड्यन्त्रों की कई परतों को खोलती है और हर देशभक्त को झकझोरती है। अपनी अनूठी राष्ट्रवादी लेखन शैली के लिए विख्यात डॉ. राकेश कुमार आर्य भारतवर्ष के उन लब्ध प्रतिष्ठित इतिहासकारों में से एक हैं जिनकी लेखनी के साथ माँ भारती की चेतना बोलने लगती है। श्री आर्य ने इस पुस्तक के माध्यम से एक बार फिर यह सिद्ध किया है कि वह राष्ट्र की नब्ज पर हाथ रखकर लिखते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में भी डॉ. आर्य ने कई रहस्यों से पर्दा उठाया है और देश के राष्ट्रवादी लोगों के हृदय को सीधे-सीधे झकझोरा है। 17 जुलाई, 1967 को उत्तर प्रदेश के जनपद गौतमबुद्ध नगर के महावड़ नामक गांव में जन्मे लेखक की अब तक 55 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने अपने राष्ट्रवादी लेखन के माध्यम से इतिहास को नई परिभाषा प्रदान की है।
प्रस्तुत पुस्तक को आद्योपांत पढ़ने से स्पष्ट होता है कि बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर इस्लाम के विषय में बड़ा स्पष्ट मत रखते थे कि यह मजहब भारतवर्ष के लिए एक 'अभिशाप' है। इस्लाम के विषय में ऐसा स्पष्ट चिन्तन गांधीजी और नेहरूजी कभी नहीं व्यक्त कर सके।
पुस्तक इस बात को दृष्टिगत रखकर लिखी गई है कि आज के तथाकथित अम्बेडकरवादी 'जय भीम और जय मीम' के जिस गठबंधन को बनाकर प्रस्तुत कर रहे हैं उसे बाबासाहेब के विचारों के अनुकूल कतई नहीं कहा जा सकता। विद्वान लेखक श्री आर्य इस पुस्तक के माध्यम से अपने इस मत को सिद्ध करने में पूर्णतया सफल रहे हैं। पुस्तक यह संदेश देती है कि हिन्दू समाज को तोड़ने के सभी कुचक्रों से हमें सावधान रहते हुए राष्ट्र निर्माण के लिए एक होकर आगे बढ़ना होगा।
Name | Jai Bheem - Jai Meem Aur Babasahab (जय भीम - जय मीम और बाबासाहेब) |
---|---|
ISBN | 9789390504145 |
Pages | 118 |
Language | Hindi |
Author | Dr. Rakesh Kumar Arya |
Format | Paperback |
Genres | Biography & Autobiography |
UB Label | New |
'जय भीम-जय मीम और बाबासाहेब' पुस्तक ऐतिहासिक तथ्यों से भरपूर एक शोधपरक दस्तावेज है, जो भारत के बाहरी-भीतरी राजनीतिक षड्यन्त्रों की कई परतों को खोलती है और हर देशभक्त को झकझोरती है। अपनी अनूठी राष्ट्रवादी लेखन शैली के लिए विख्यात डॉ. राकेश कुमार आर्य भारतवर्ष के उन लब्ध प्रतिष्ठित इतिहासकारों में से एक हैं जिनकी लेखनी के साथ माँ भारती की चेतना बोलने लगती है। श्री आर्य ने इस पुस्तक के माध्यम से एक बार फिर यह सिद्ध किया है कि वह राष्ट्र की नब्ज पर हाथ रखकर लिखते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में भी डॉ. आर्य ने कई रहस्यों से पर्दा उठाया है और देश के राष्ट्रवादी लोगों के हृदय को सीधे-सीधे झकझोरा है। 17 जुलाई, 1967 को उत्तर प्रदेश के जनपद गौतमबुद्ध नगर के महावड़ नामक गांव में जन्मे लेखक की अब तक 55 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने अपने राष्ट्रवादी लेखन के माध्यम से इतिहास को नई परिभाषा प्रदान की है।
प्रस्तुत पुस्तक को आद्योपांत पढ़ने से स्पष्ट होता है कि बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर इस्लाम के विषय में बड़ा स्पष्ट मत रखते थे कि यह मजहब भारतवर्ष के लिए एक 'अभिशाप' है। इस्लाम के विषय में ऐसा स्पष्ट चिन्तन गांधीजी और नेहरूजी कभी नहीं व्यक्त कर सके।
पुस्तक इस बात को दृष्टिगत रखकर लिखी गई है कि आज के तथाकथित अम्बेडकरवादी 'जय भीम और जय मीम' के जिस गठबंधन को बनाकर प्रस्तुत कर रहे हैं उसे बाबासाहेब के विचारों के अनुकूल कतई नहीं कहा जा सकता। विद्वान लेखक श्री आर्य इस पुस्तक के माध्यम से अपने इस मत को सिद्ध करने में पूर्णतया सफल रहे हैं। पुस्तक यह संदेश देती है कि हिन्दू समाज को तोड़ने के सभी कुचक्रों से हमें सावधान रहते हुए राष्ट्र निर्माण के लिए एक होकर आगे बढ़ना होगा।