अस्तपाल की टांग
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Quick Overview
जनता जितना वर्तमान में हास्य और व्यंग्य के निकट है, उतना कविता के किसी और रस के नहीं। साहित्य की कसौटी पर हास्य-व्यंग्य का कंचन खरा सिद्ध होता है। हास्यसमाज में प्रचलित भी है, जनमानस को आनंदित और पुलकित भी करता है तथा व्यंग्य आज के समाज की असंतुलित, आदर्शहीन प्रवृत्तियों का पर्दाफाश कर जनता को उद्बोधित तथा आंदोलित कर उन्नति की दिशा की नई राह खोलता है। हास्य रस ने काव्य के मठाधीशों द्वारा दिया गया वनवास बहुत वर्षों तक भोग लिया, अब सिंहासन भी उसका है और साम्राज्य भी। उसे कोई उसके पद से हटा या डिगा नहीं सकता।
प्रस्तुत प्रस्तुक में सन् साठ से लेकर आज तक की लेखक की, जैसी भी हैं, एक झलक मात्र है। समय के अंतराल और समाज के बदलते रंग-रूप को ध्यान में रखकर पाठक इन्हें पढ़ेंगे तो ये अवश्य उन्हें भाषा, विचार और छंद का आनंद देंगी।
Name | अस्तपाल की टांग |
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ISBN | 8128809539 |
Pages | 156 |
Language | Hindi |
Author | Om Prakash Aaditya |
Format | Paperback |
अस्तपाल की टांग